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Saturday, September 24, 2011

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत

ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है
कि हमारे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
की मौत कैसे हुई? मैं यहां कुछ नया कहने
वाला नही हूँ, मेरी ये कोशिश केवल एक
समाचार पत्र का एक टुकडा सुरक्षित
करने की कोशिश मात्र है, जय हिन्द।
11 अगस्त 2011 इन्डियाटाइम्स
वाराणसी -- नेताजी सुभाष चंद्र बोस
की मौत के रहस्य को सुलझाने के लिए कई
कमिटी और कमिशन बिठाए
गए, कितनी किताबें लिखी गईं, लेकिन
नेताजी के एक सहयोगी और
प्रत्यक्षदर्शी से किसी ने कभी संपर्क
नहीं किया।
आजमगढ़ में इस्लामपुरा, बिलरियागंज
में रहने वाले 107 साल के निजामुद्दीन
खुद को आजाद हिंद फौज में
नेताजीका ड्राइवर बताते हैं।
निजामुद्दीन के मुताबिक उन्होंने 1942
में आजाद हिंद फौज जॉइन करने के बाद 4
साल नेताजी के साथ गुजारे।
निजामुद्दीन को यकीन है
कि नेताजी की मौत 1945 के प्लेन हादसे
में नहीं हुई थी। निजामुद्दीन कहते हैं, ‘यह
कैसे हो सकता है क्योंकि प्लेन हादसे के
करीब 3-4 महीने बाद मैंने उन्हें कार से
बर्मा और थाईलैंड की सीमा पर सितंगपुर
नदी के किनारे छोड़ा था।‘
निजामुद्दीन को इस बारे में कुछ
भी पता नहीं कि जब उन्होंने
नेताजी को नदी के किनारे छोड़ा, उसके
बाद क्या हुआ। निजामुद्दीन के मुताबिक
वह नेताजी के साथ ही रहना चाहते
थे, लेकिन नेताजी ने उन्हें आजाद भारत में
मिलने का वादा करके वापस भेज
दिया था।
करीब 10 साल बाद निजामुद्दीन
की मुलाकात नेताजी के करीबी एक
स्वामी से हुई थी। स्वामी नेताजी के
संपर्क में थे। निजामुद्दीन के पास एक
सर्टिफिकेट भी है जो आजाद हिंद फौज से
उनका संबंध दिखाता है। इस सर्टिफिकेट
से यह भी पता चलता है
कि स्वामी का पूरा नाम
एसवी स्वामी था और वह राहत और देश -
प्रत्यावर्तन काउंसिल , पूर्व आजाद हिंद
फौज और गठबंधन , रंगून के चेयरमैन थे।
1969 में निजामुद्दीन अपने परिवार के
साथ भारत लौट आए।
ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है

दिल की फरियाद के ख़त

खून
से
लिखे
थे
ख़त
वो दिल
की फरियाद
के
तड़पता था दिल
वो मेरा तेरी ही याद
में
वस्ल में रही तमन्ना तेरे ही दीदार
की जब हुआ दीदार तो वो घडी थी बहार
की वो बहार भी है रुक गई , वो बयार
भी है मिट गयी इन आँधियों से की है नारद
उम्मीद क्यूँ तुने प्यार की कांटो से उलझ
कर घाव ही मिल पता है बेवजह
ही शिराओं से लहू छलक जाता है इश्क करने
की "नारद" यही एक कहानी है लोग कहते
है की इश्क जिंदगानी है पर माना है मैंने
बस यही* एक बेगानी है *बस
जिंदगी ही बेगानी है "ना...

Friday, September 23, 2011

कोन कहता है हमारे देश में ३२ रूपये में दो वक्त पेट भर कहा नहीं सकते अरे इन गरीबों को संसद में तो जाकर देखोकोन कहता है हमारे देश में ३२ रूपये में दो वक्त पेट भर कहा नहीं सकते अरे इन गरीबों को संसद में तो जाकर देखो

कितनी अजीब बात है ..केसे हमारे देश के
लोग हैं .बेचारी हमारी सरकार
इतनी महनत और लगन के बाद
सरकारी आंकड़े तय्यार करती है
गरीबी का आंकलन करती है और
हम .हमारा मिडिया सरकारी महनत
का मजाक उढ़ाते हैं अभी हाल ही में देश
की सर्वोच्च अदालत में सरकार ने
गरीबी को परिभाषित करते हुए एक शपथ
पत्र दिया जिसमे शहर में ३२ रूपये और
गाँव में २८ रूपये में पेट भरनेवाली बात
कही और इससे कम आमदनी वालेको गरीब
माना गया है हमारे देश में ४५ करोड़
लोगों की यह संख्या बताई गयी है
सवा सो करोड़ में से ४५ करोड़ आज भी देश
में बदतर हालात में है यह तो सरकार ने
स्वीकार कर लिया है दोस्तों ..आओ सोचते
हैं सरकार ने यह आंकड़े कहां से प्राप्त
किये ...................भाई सरकार का कोई
भी कारिन्दा जो एयर कंडीशन से कम बात
नहीं करता है वोह किसी गाँव
या कच्ची बस्ती गरीबों की बस्ती में
तो नहीं गया ...लेकिन हाँ संसद
की केन्टीन से यह आंकड़े उन्होंने प्राप्त
किये हैं जहां एक सांसद इस
गरीबी की परिभाषा में आता है
दोस्तों आप जानते हैं संसद की केन्टीन में
एक रूपये की चाय दो रूपये का दूध ..डेढ़
रूपये की दाल ..दो रूपये के चांवल ..एक रूपये
की चपाती चार iरूपये का डोसा ..आठ
रूपये की बिरयानी ...तेरह रूपये
की मछली और २४ रूपये
का मुर्गा मिलता है और यह बेचारे इतने
गरीब है के इतना महंगा सामान खरीद कर
खाने के इन्हें कम रूपये मिलते इन्हें केवल
अस्सी हजार रूपये प्रति माह का वेतन
मिलता है और करीब एक लाख रूपये के दुसरे
भत्ते मिलते हैं ..अब देश के इन
गरीबों का बेचारों का क्या करें बेचारे
संसद में जाकर सोते हैं संसद में जाकर लड़ते हैं
जब कानून बनाने या विधेयक पारित करने
की बात होती है तो वाक् आउट कर कानून
पारित करवा देते हैं जब विश्वास मत
की बात आती है तो बेचारे रिश्वत लेकर
वोट डाल देते हैं ..लोकसभा में सवाल
पूंछना हो तो इसके भी रूपये ले लेते हैं और
संसद के बाहर कोई अगर इस सच
को उजागर करे तो उन्हें विशेषाधिकार
का नोटिस देकर डरा देते हैं .हैं
ना हमारा देश गरीब और हमारे देश
की गरीबी के आंकड़े बिलकुल सही और ठीक

Thursday, September 22, 2011

मा

मैं अपने घर में तनहा नहीं रहता
मेरे साथ मेरी माँ की दुआएं होती है
जब दिन की मुशक्कत से थक कर
मैं शाम को घर लौटता हूँ
तो उनके सायों में मुझे सुकून मिलता है
देर रात तक
मेरे बिस्तर के किनारे बैठके वो
मुझे सोते हुए देखती है
सुबह को उठाकर मुझे
प्यार से वो
नयी उम्मीदों से मुझे वो जोडती है

इंतज़ार

वक़्त से कुछ न कहा मैंने
वो आया और लौट गया
रास्तो को भी कहाँ रोका था मैंने
न कितने मुसाफिर आये और चले गये
दिन निकले और ढल गाए
रातें भी ख़ामोशी से आयी
और चुपचाप चली गयी
चाँद ने भी मुझसे कुछ नहीं कहा
मुझसे रात भर आँख बचाकर चमकता रहा
एक तुम क्या गये
दुनिया बदल गयी मेरी
लेकिन मैं फिर भी उसी जगह खड़ा रहा
जहाँ तुम मूझे छोड़ गयी थी
इस इंतज़ार में कि शायद
कभी किसी बहाने से तुम लौट आओ