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Friday, September 23, 2011

कोन कहता है हमारे देश में ३२ रूपये में दो वक्त पेट भर कहा नहीं सकते अरे इन गरीबों को संसद में तो जाकर देखोकोन कहता है हमारे देश में ३२ रूपये में दो वक्त पेट भर कहा नहीं सकते अरे इन गरीबों को संसद में तो जाकर देखो

कितनी अजीब बात है ..केसे हमारे देश के
लोग हैं .बेचारी हमारी सरकार
इतनी महनत और लगन के बाद
सरकारी आंकड़े तय्यार करती है
गरीबी का आंकलन करती है और
हम .हमारा मिडिया सरकारी महनत
का मजाक उढ़ाते हैं अभी हाल ही में देश
की सर्वोच्च अदालत में सरकार ने
गरीबी को परिभाषित करते हुए एक शपथ
पत्र दिया जिसमे शहर में ३२ रूपये और
गाँव में २८ रूपये में पेट भरनेवाली बात
कही और इससे कम आमदनी वालेको गरीब
माना गया है हमारे देश में ४५ करोड़
लोगों की यह संख्या बताई गयी है
सवा सो करोड़ में से ४५ करोड़ आज भी देश
में बदतर हालात में है यह तो सरकार ने
स्वीकार कर लिया है दोस्तों ..आओ सोचते
हैं सरकार ने यह आंकड़े कहां से प्राप्त
किये ...................भाई सरकार का कोई
भी कारिन्दा जो एयर कंडीशन से कम बात
नहीं करता है वोह किसी गाँव
या कच्ची बस्ती गरीबों की बस्ती में
तो नहीं गया ...लेकिन हाँ संसद
की केन्टीन से यह आंकड़े उन्होंने प्राप्त
किये हैं जहां एक सांसद इस
गरीबी की परिभाषा में आता है
दोस्तों आप जानते हैं संसद की केन्टीन में
एक रूपये की चाय दो रूपये का दूध ..डेढ़
रूपये की दाल ..दो रूपये के चांवल ..एक रूपये
की चपाती चार iरूपये का डोसा ..आठ
रूपये की बिरयानी ...तेरह रूपये
की मछली और २४ रूपये
का मुर्गा मिलता है और यह बेचारे इतने
गरीब है के इतना महंगा सामान खरीद कर
खाने के इन्हें कम रूपये मिलते इन्हें केवल
अस्सी हजार रूपये प्रति माह का वेतन
मिलता है और करीब एक लाख रूपये के दुसरे
भत्ते मिलते हैं ..अब देश के इन
गरीबों का बेचारों का क्या करें बेचारे
संसद में जाकर सोते हैं संसद में जाकर लड़ते हैं
जब कानून बनाने या विधेयक पारित करने
की बात होती है तो वाक् आउट कर कानून
पारित करवा देते हैं जब विश्वास मत
की बात आती है तो बेचारे रिश्वत लेकर
वोट डाल देते हैं ..लोकसभा में सवाल
पूंछना हो तो इसके भी रूपये ले लेते हैं और
संसद के बाहर कोई अगर इस सच
को उजागर करे तो उन्हें विशेषाधिकार
का नोटिस देकर डरा देते हैं .हैं
ना हमारा देश गरीब और हमारे देश
की गरीबी के आंकड़े बिलकुल सही और ठीक

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