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Thursday, September 22, 2011

इंतज़ार

वक़्त से कुछ न कहा मैंने
वो आया और लौट गया
रास्तो को भी कहाँ रोका था मैंने
न कितने मुसाफिर आये और चले गये
दिन निकले और ढल गाए
रातें भी ख़ामोशी से आयी
और चुपचाप चली गयी
चाँद ने भी मुझसे कुछ नहीं कहा
मुझसे रात भर आँख बचाकर चमकता रहा
एक तुम क्या गये
दुनिया बदल गयी मेरी
लेकिन मैं फिर भी उसी जगह खड़ा रहा
जहाँ तुम मूझे छोड़ गयी थी
इस इंतज़ार में कि शायद
कभी किसी बहाने से तुम लौट आओ

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